ऊँचे ऊँचे सपने थे,पंख फैला कर इठलाता यह चला तो था माँ भारती को बचाने एक तिनका पहाड़ से भिड़ा तो था.. होना क्या था...पहाड़ के इशारो पर उसके रहनुमा हवा के झोंको ने कि कोशिश उड़ाने की तिनके को ....लेकिन तिनका भी कहा डिगा था अपनी जिद पर कट्टर वो तोअड़ा था ... हुआ घमासान.... हिल गयी नीव पहाड़ की...जो सालो से अट्टहास के साथ अकड़ कर खड़ा था तिनका था मासूम और छोटा..रहनुमाओ ने खेला खेल, बड़ा ही खोटा.. प्रयास था तिनके को कमजोर करने का लेकिन.... तिनके की नियत थी साफ और इरादा था ठोस.. पहाड़ का घमंड हुआ चूर जब मिला तिनके को बोस... अब लड़ाई तिनके की है जारी क्योकि रहनुमाओ के साथ पहाड़ के चूर होने की है तैयारी... वक्त ये भी आएगा ..रहनुमाओ का बादशाह काल कोठरी मे गुनगुनाएगा.. वक्त का पहिया है वक्त से चलेगा .. देखना ये है तिनके जो चला था ...कब तक चलेगा... होगी छल, भय की पराकाष्ठा ...तिनका है छोटा सा मासूम ये कब तक सहेगा.... तिनका है छोटा सा मासूम ये कब तक सहेगा... आई आई टी मंडी में हो बवंडर के बीच तिनके रूपी छोटे से कर्मचारी यानि की मुझे अब मानसिक अस्वस्थ बोलकर जो आप यह आरोप से बच कर ...