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उच्च शिक्षण संस्थानों में दबायी जा रही आउट सोर्स कर्मचारियों की आवाज....

तमाम नियम बना डाले, कई कायदे बना डाले
करा झमेला ज़माने भर का ,लेकिन हकीकत पर तुमने जुबां पर ताले लगा डाले......
तमाम एक्ट, नियम कायदे बनाये जाते है ताकि भारत में रहने वाले हर तबके के इंसान के साथ न्याय हो, लेकिन जब उच्च शिक्षण संसथान ही उनके यहाँ कार्यरत आउट सोर्स स्टाफ के साथ भेदभाव करे ,उनके हक़ के लिए कोई कदम न उठाये तो यह एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है-ऐसा ही प्रतीत हुआ देश के सर्वोच्च उच्च शिक्षण संस्थानों में से एक संस्थान आई आई टी, दिल्ली से प्राप्त उत्तर में जिसमे बताया गया की आउट सोरस कर्मचारियों को हम नहीं चलाते बल्कि एक एजेंसी के द्वारा चलाया जाता है, और हम किसी भी आउट सोर्स कर्मचारी को बोनस नहीं देते, साथ में संस्थान ने बताया की शिक्षण संस्थान के कर्मचारियों को इस एक्ट में छूट दी गयी है ..और तो और संस्थान ने आउट सोर्स कर्मचारिर्यो की सूचि भी उपलब्ध नहीं करवाई जो बोनस के लिए उपयुक्त है .... जबकि वही के कुछ आउट सोर्स कर्मचारियों ने मुझे बताया था की उनको बोनस नहीं दिया जाता और हमारी सारी डिटेल आई आई टी प्रबंधक के पास है अत यह कहना की हमारे पास कर्मचारियो की सूचि नहीं यह सफ़ेद झूठ है ....  

कौन है आउट सोर्स कर्मचारी?

आउट सोर्स कर्मचारी भी सरकारी कर्मचारी की तरह ही एक इंसान होता है जो मज़बूरी में या आवश्यकताओं के लिए अपने आप को शोषित करवाता है, यह 18 साल से 55 साल का व्यक्ति हो सकता है,कोई पोस्ट ग्रेजुएट होता है तो कोई 12th मेरिट वाला इंटेलीजेंट जो चिरकुट जैसे कर्मचारियों की आधी से भी कम वेतन में पूरी सेवा देते है, बल्कि कई बार तो पूरी से भी ज्यादा सेवा इनसे सिर्फ इसलिए जी जाती है क्योकि यह मजबूर होते है,मना नहीं कर सकते...कई बार आउट सोर्स कर्मचारी की जिंदगी एक अभिशाप की तरह होती है जो आगे तो बढ़ना चाहता है लेकिन उसकी मज़बूरी वाली नौकरी उसको आगे नहीं बढ़ने देती ... खेर छोड़िये यदि उनके बारे में लिखने लगा तो शायद पूरा दिन कम पढ़ जायेगा ....वैसे  आउट सोर्स कर्मचारी उनको कहा जाता है जो की किसी भी संस्थान, कंपनी में सीधे रूप से नियुक्त नहीं किये जाते बल्कि किसी और एजेंसी या 3rd पार्टी के द्वारा नियुक्त किये जाते है,कर्मचारी कार्य तो संस्थान के लिए ही करते है लेकिन उनका वेतन वगेरा सब कुछ एजेंसी के द्वारा ही उनको प्राप्त होता है....
आई आई टी दिल्ली ही नहीं ओर भी उच्च शिक्षण सस्न्थानो के कर्मचारियों के साथ यही हो रहा है....कंपनी बोनस देती नहीं ...शिक्षण संस्थान को मतलब नहीं ...और दोनों के बीच पीसता है तो बिचारा वो कर्मचारी जो देश का नागरिक है और मजबूर है ... कोई उसकी और देखने वाला नहीं ...कोई नहीं जो उसेक हित की बात करे ....


क्या वाकई में बोनस के हक़दार नहीं शिक्षण संस्थान के आउट सोर्स कर्मचारी ?


जैसा की आई आई टी दिल्ली ने बताया की शिक्षण संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों को बोनस एक्ट में छूट दी गयी है  इस नियम की कॉपी आई आई टी दिल्ली ने मुझे भेजा भी सही ..उसी के बाद से में विचलित हो उठा और चीफ लेबर कमिश्नर ऑफिस फोन किया, फोन के बाद मेने उनको एक मेल भी भेजा जिसमे आई आई टी दिल्ली के द्वारा बताये गए नियम को पूछा तब चीफ लेबर कमिश्नर ऑफिस से प्रति उत्तर मिला जिसमे साफ तोर पर लिखा गया की  आउट सोर्स कर्मचारी शिक्षण संस्था के कर्मचारी नहीं है अत: उनका इस बोनस एक्ट के तहत फायदा मिलना चाहिए ।


और इसी कड़ी में अच्छी बात यह रही की आई आई टी गांधीनगर में बोनस, कर्मचारियों को पुरे नियम की तरह दिया जाता है और उन्होंने इसकी सूचि भी उपलब्ध करवाई जबकि वह भी कर्मचारी आउट सोर्स एजेंसी के तहत ही काम करते है...




में इस ब्लॉग के माध्यम से सभी उच्च शिक्षण संस्थान ,एजेंसी ,पदों पर आसीन जिम्मेदार वक्तित्व को बताना चाहता हु की "मज़बूरी की जंजीरो ने मुझे इतना जकड़ा की में उफ़ तक न  कर पाया, लेकिन तू तो मेरा मालिक है मज़बूरी से आज़ाद न सही ,मेरी उफ़ को ही कम कर दे...

आप लोग आउट सोर्स कर्मचारियों की मजबूरिओ को तो नहीं हटा सकते लेकिन कम से कम उनके साथ हो रहे अन्यायों के खिलाफ तो आवाज बुलुंद कर सकते हो...कम से कम उनके हक़ के लिए एक पहल तो कर सकते हो....
इसी उम्मीद के साथ में विराम देना चाहूंगा की ...शायद इनका हक़ दिलाने के लिए जिम्मेदार आगे आएंगे 

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