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नागरिकता संशोधन बिल भारत के लिए ऐतिहासिक कदम या भूल?

भारत के विभाजन के प्रमुख कारणों में से एक नेहरू एवं जिन्ना की सत्ता के प्रति लालसा भी रहा

"भारत में चल रही अशांति का अंतिम रास्ता है इंडिया का विभाजन , हिन्दू इंडिया और मुस्लिम इंडिया को हर हाल में अलग होना होगा। हमारा इतिहास, संस्कृति,भाषा ,वास्तुकला, संगीत, कैलेंडर यहाँ तक की कानून और जिंदगी जीने का तरीका हिंदुसो से पूरी तरह अलग है। एक इंडिया के बारे में सोचना असंभव है इसका मतलब मुस्लिमो को दबाना होगा, ब्रिटिश हुकूमत के वर्चस्व वाली व्यवस्था में हिन्दुओ के शासन की भूमिका को मुस्लिम कभी स्वीकार नहीं करेगा।" मोहम्मद अली जिन्ना की यह आजादी से पहले भारत के विभाजन के समय कहे गए कथन थे। आज केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है अधिकांश मुस्लिमो में असंतोष की स्थिति बढ़ रही है, उनको सरकार का हर कदम उनके खिलाफ नजर आ रहा है, उनको लग रहा है की उनको दबाया जा रहा है उनके हक़ मारे जा रहे है। दशकों से लंबित पडे कश्मीर का धारा 370 का मसला हो या मुस्लिम महिलाओ के ट्रिपल तलाक का मुद्दा,अयोध्या मसले पर आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी लेकर  मुस्लिम सम्प्रदाय के कुछ लोगो के मन में शंका है की बीजेपी सरकार के राज में यह तो होना ही था। जिस भारतीय मुस्लिम ने धर्म के आधार पर हुए बटवारे को नकारते हुए हिन्दुस्तान को ही अपनी मातृभूमि चुना, उनका विश्वास अब डोल रहा है । नागरिक संशोधन बिल 2019 आने के बाद उनमे असंतोष ओर बढ़ गया है । उनको लगता है की उनके साथ भेदभाव की सीमा लाँघि जा रही है। अपितु ऐसा बिलकुल नहीं है, यह राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले अपने फायदे के लिए ही मुस्लिम समुदाय को हमेशा गुमराह करते आ रहे है। वर्तमन बीजेपी सरकार ने नागरिक संशोधन बिल 2019 को लोकसभा एवं राज्य सभा में पेश किया और यह दोनों सदनों से बहुमत के साथ पारित हो गया, अब यह कानून बन चुका है। इस कानून के लागु होने से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अत्याचार के शिकार हुए अल्प संख्यक समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी । इन अल्प संख्यक समुदाय में न सिर्फ हिन्दू है बल्कि पांच अन्य धर्म के लोग भी है जो की इन तीनो मुस्लिम बाहुल्य देशो में उनके धर्म की वजह से प्रताड़ित किये जा रहे थे । हिन्दू, सिक्ख, पारसी, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म के शरणार्थी जो 31 दिसंबर 2014 तक या उससे पहले भारत में आकर शरण ले चुके हो , भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकेंगे। मुस्लिम धर्म के शरणार्थी को इस कानून के तहत भारत की नागरिकता नहीं देने के कारण ही मुस्लिम धर्म के लोगो में असंतोष है और इसी वजह से उनमे भय है की उनकी नागरिकता पर भी सवाल खड़ा हो सकता है। जबकि यह भय बिलकुल बेबुनियाद है यह कानून अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए है किसी की नागरिकता रद्द करने के लिए नहीं।


 शरणार्थी मुस्लिमो को नागरिकता संशोधन कानून में शामिल नहीं करने का सबसे बड़ा कारण विश्व में मुस्लिमो और हिन्दू आबादी वाले देश की संख्या में बहुत विशाल अंतर होना। विश्व में सिर्फ भारत, नेपाल ऐसे देश है जहां हिन्दू की जनसंख्या बाकि धर्मों के लोगो से ज्यादा है, भारत में हिन्दू की आबादी 79.8% है वहीं नेपाल में यह 81.3% है जबकि मुस्लिम जनसँख्या के हिसाब से बात की जाये तो देशो का यह आंकड़ा बहुत ज्यादा है कई ऐसे देश है जहां पुरे 100% तक मुस्लिम है और देश को इस्लामिक देश घोषित कर रखा है, जबकि हिन्दू के लिए कोई भी पूर्णतया हिन्दू देश नहीं है।  जिन तीन देश अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश की कानून में बात की गयी है उसमे मुस्लिम धर्म की आबादी क्रमश 99.8%, 96.4% व 90.4% है। इसके अलावा अल्जीरिया,इंडोनेशिया,ईरान, इराक , सऊदी अरब,यमन, ट्यूनीशिया, तुर्की, जॉर्डन,सोमालिया, दुबई आदि बहुत से ऐसे देश है जो इस्लामिक देश घोषित किये जा चुके है और इन देशो में मुस्लिम धर्म की ही संस्कृति, रिवाज, नियम-कायदे आदि माने जाते है। इन सभी देशो में मुस्लिम आबादी 90% से ज्यादा है कई में तो यह 99% से भी ज्यादा है। जब नागरिक संशोधन कानून-2019 बनाया गया तब इन तमाम तथ्यों को ध्यान में रखा गया की मुस्लिम शरणार्थी के लिए भारत के अलावा कई अनेक देश भी हो सकते है जहां वो सुखद शरण ले सकते है लेकिन हिन्दू धर्म के शरणार्थियो के लिए हिंदुस्तान के अलावा कोई ओर देश नहीं क्योकि भारत ही एक मात्र  ऐसा देश है जहां पर हिन्दू संस्कृति का फैलाव है, और यह सबसे बड़ा धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है। साथ ही बौद्ध, पारसी, सिक्ख, जैन जैसे धर्मो के अनुयायी भी सबसे ज्यादा यही निवास करते है। कहा जाता है हिंदुस्तान ही हिन्दुओ की जन्मस्थली है, भले ही हिन्दुस्तान धर्मनिरपेक्ष देश है लेकिन सदियों से यहाँ हिन्दुओ का ही बाहुल्य है इसलिए दूसरे अन्य देशो से सताए हुए पीड़ित हिन्दू किसी अन्य देश में शरण न लेकर सिर्फ भारत की ओर रुख करते है और इसे अपना ही देश मानते है । अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश यह तीन ही देश है जिनके अल्पसंख्यक समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी क्योकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान ओर बांग्लादेश यह तीनो ही देश कभी न कभी भारत के हिस्सा रहे है। अफगान पहले एक हिन्दू राष्ट्र था। बाद में यह बौद्ध राष्ट्र बना और अब वह एक इस्लामिक राष्ट्र है। इसलिए इन तीन देशो के अल्पसंख्यक समुदायों के  शरणार्थियों को ही भारत में नागरिकता संशोधन कानून-2019 के तहत योग्य माना गया है, अन्य देशो के अल्पसंख्यकों को नहीं ।

1947 में जब भारत देश का विभाजन हो रहा था तब सिर्फ धर्म को ही इसका आधार रखा गया विभाजन की सबसे ज्यादा मांग जिन्ना के द्वारा उठाई गयी जिन्ना को लगता था मुस्लिम और हिन्दू कभी भी एक साथ नहीं रह सकेंगे। देश में लगी विभाजन की आग में लाखो बेगुनाहो को अपनी जान की आहुति देनी पड़ी । "गिल्टी मेन ऑफ पार्टिशन " किताब में बताया गया की कई कांग्रेस नेता जिसमे नेहरू भी शामिल थे, वे सत्ता के भूखे थे और इस बटवारे का प्रमुख कारण यह भी रहा । भारत का बटवारा जिन्ना और नेहरू के सत्ता के लालच की वजह से हुआ। जब बटवारा हुआ तब भारत को हिंदुस्तान और पाकिस्तान में बांटा गया। अधिकतर मुस्लिमो के साथ कुछ हिन्दु, सिख आदि धर्मो के लोगो ने पाकिस्तान को चुना बल्कि अधिकतर हिन्दुओ के साथ मुस्लिम,सिक्ख ने भारत को ही अपनी मातृभूमि माना। धर्म निरपेक्ष देश का विभाजन सत्ता की भूख के कारण नेहरू एवं जिन्ना ने किया, जिन्ना के पूर्वज खुद राजपूत अथार्थ हिन्दू थे लेकिन उन्होंने बाद में इस्लाम कबूल कर लिया । विभाजन के बाद 1951 में पाकिस्तान की कुल आबादी 7 करोड़ 57 लाख थी जिनमे से 14.20% यानि लगभग 1.07 करोड़ आबादी गैर मुस्लिम (अल्पसंख्यक समुदाय) की थी। उस समय तक बांग्लादेश, पाकिस्तान का ही हिस्सा हुआ करता था। लेकिन आज जब दोनों देश अलग हो चुके है और उनकी कुल आबादी 37 करोड़ 96 लाख से ज्यादा है तब मात्र 2 करोड़ 37 लाख के लगभग अल्पसंख्यक बचे है यानि की 6.24%। पाकिस्तान में यह 1.85 % है जबकि बांग्लादेश में 8.54%। जो अल्पसंख्यक पहले इन दोनों देशो में कुल आबादी के 14.20% थे वो घट कर अब मात्र आधे से भी कम रह गए है। यह अल्पसंख्यक कहाँ गए ? क्यों कम हो गए? इन अल्पसंख्यों का धर्म परिवर्तन कर दिया गया, तो कई बेगुनाहो की धर्म के नाम पर हत्याएं कर दी गयी, कई अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को डरा धमकार बेच दिया गया, तो न जाने कितनो से जबरन निकाह कर लिया गया, इनके मंदिर तोड़ दिए जाते, नौकरी में, व्यववसाय में आदि में इनको प्रताड़ित किया जाने लगा। किसी ने इनके बारे में नहीं सोचा। 

यह अल्पसंख्यक समुदायों के लोग भारत की ओर रुख करने लगे क्योकि विभाजन से पूर्व यह सब भारत के ही नागरिक थे लेकिन विभाजन के समय इन्होने अपने पूर्वजो के साथ अपने घर को नहीं छोड़ा लेकिन समय बीतता गया ओर इन पर अत्याचार बढ़ता गया, जब अत्याचार की सीमा पार हो गयी तो यह भारत में शरणार्थी बन कर आ गए। इस कानून के लागु होने से इन देशो से आये अल्पसंखयक लाखो लोगो को भारत की मान्यता तो मिल जाएगी, यह मानवता के नाते एक बहुत ही बड़ा कदम होगा की परिवार के बिछड़े को पुनः मिलाना लेकिन भारत जो खुद जनसँख्या विस्फोट की त्रासदी से गुजर रहा है, जनसंख्या नियंत्रणः कानून की ओर देख रहा है, जहां बेरोजगारी चरम पर है, गरीबी,महगांई ने भारत की इकॉनमी की कमर तोड़ रखी है वहां इन लाखो लोगो की नागरिकता क्या प्रभाव डालेगी यह तो समय ही बताएगा । साथ ही उत्तरी पूर्वी राज्यों में जो सालो से शरणार्थीयो के खिलाफ संघर्ष कर रहे है अपनी संस्कृति बचाने को, पर क्या प्रभाव डालेगी । असम के 1979 के लोकसभा उपचुनाव में NRC लागु करने का वादा किया गया था जिस पर कई वर्षो के आंदोलन के बाद 1955 में असम समझौता हुआ जिसके तहत मार्च 1971 के बाद बसने वाले शरणर्थियो/घुसपैठयो को बाहर किया जायेगा । हाल ही में अगस्त 2019 में  समझौते के तहत NRC लागु कर 19 लाख लोगो को देश से बाहर निकालने    का फैसला किया इनमे ज्यादतर हिन्दू धर्म एवं वहां के मूल आदिवासी समुदाय के लोग थे लेकिन अब  नागरिक संशोधन कानून-2019 के तहत यह समय सीमा बढ़ाकर 31 दिसम्बर 2014 कर दी गयी गयी है जिसके तहत अब उत्तरी पूरी राज्यों के लोगो में रोष और डर है की इन 19 लाख लोगो को अब नागरिकता मिल जाएगी और उनकी भाषा, संस्कृति खतरे में आ जाएगी। साथ ही उनका कहना है की यह असम समझौते का उलंघन है इसी वजह से वहां उग्र आंदोलन तेजी से फेल रहा है, हालाँकि वहां की सरकार का कहना है की आम जन इस आंदोलन में भाग नहीं ले रहे है यह राजनैतिक आंदोलन है कुछ समय में शांत हो जायेगा । चूँकि पहली बार धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर सविंधान में कोई कानून पारित किया गया है क्या यह भविष्य में भी धर्म के नाम पर आगे के बदलाव की ओर इशारा करता है ? इन तीनो देशो के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग कब तक देश में आते रहेंगे और उसके लिए क्या रणनीति होगी? इन सभी लाखो लोगो को देश में नागरिकता देने के साथ रोजगार, घर आदि जैसे अनेको मुद्दों से कैसे सरकार निपटेगी यह कई मायनो में देश के लिए महत्वपूर्ण है और भविष्य निर्धारित करेगा। इन्ही सब तथ्यों के बीच देखना है की क्या सरकार का मानवता के नाम पर धर्म के आधार पर लाया गया नागरिक संशोधन बिल-2019 ऐतिहासिक कदम है या भूल।

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