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जिंदगी सुकूनभरी चाहिए तो, किस्मत से मत लड़ो,जो लिखा है उसी को बेहतरीन बना लो...(1)

अक्सर लोग किस्मत को दोष देते है लेकिन जो मिला है उसमे सुख नहीं ढूंढते, यदि वो जो मिला है उसी को जबरदस्त करने में पूरी शिद्दत से लग जाये तो जीवन शानदार हो जायेगा. हम विधाता के लेख को नहीं बदल सकते लेकिन जो लिखा है उसी से जिंदगी को बेहतरीन बना सकते है. इसके लिए एक कहानी बताता हूँ. उम्मीद करता हूँ आपको कहानी जरूर पसंद आएगी.

एक गांव में दो भाई थे उनके पिताजी एवं माताजी का देहांत बचपन में हो गया था. अब दोनों भाई अपनी खेती बाड़ी संभाल कर जीवन यापन कर रहे थे.एक दिन गांव में एक बनिए ने साप्ताहिक जी बिठाई जिसमे सिद्ध महात्मा आये.रोजाना कथा पूरी होने के बाद भोजन प्रसादी के लिए पूरा गांव आया करता था. दोनों भाई भी उस प्रसादी में भोजन ग्रहण करने पहुंच जाते. एक दिन बड़े भाई की तबियत ख़राब होने के कारण वो खेत में नहीं जा पाया. घर पर अकेला रहने से अच्छा उसने सोचा चलो आज साप्ताहिक जी सुन लेते है और फिर भोजन करके घर आ जाएंगे. वो कथा पंडाल में कथा सुनने पहुंच गया. कथा सुनने के बाद बड़े भाई के हृदय में अपार परिवर्तन हुआ और वो भाव भक्ति में लीं रहने लगा. अब उसको खेती बाड़ी करना पसंद नहीं था एक दिन उसने छोटे भाई से कहा- "मैं हिमालय पर ईश्वर की खोज में जा रहा हूँ, अगर जिन्दा रहा तो जरूर लौटूंगा. तू यह खेती बाड़ी सब रख ले."


छोटे भाई ने लाख समझाया लेकिन वो नहीं समझा और गांव छोड़ कर निकल गया. इधर कुछ सालो बाद छोटे भाई ने भी शादी कर ली.कुछ समय पश्चात् 2 लड़के और एक लड़की से उसका परिवार पूरा हुआ. छोटा भाई आंनद से जीवन यापन करने लगा. एक दिन वो तथा उसकी पत्नी पहाड़ी पार करके दूसरे गांव जा रहे थे लेकिन पहाड़ दरकने से उन दोनों की मौत हो गयी.उन दोनों की मौत की खबर पुरे गांव में आग की तरह फेल गयी. उस छोटे भाई के तीनो बच्चे अकेले रह गए. उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था. उसी बीच गांव के ही कुछ बदमाशों ने तीनो बच्चो को मारकर उनकी जायदाद हड़पनी चाही और उसके लिए षड़यंत्र रचना शुरू कर दिया,लेकिन उनकी इस करतूत की खबर गांव के कुछ सज्जन निवासियों को पड़ गयी. सज्जन लोग उसी रात उन तीनो बच्चो के पास गए, उनको खाना खिलाया और फिर उनसे कहा की- "तुम्हारी जिंदगी यहाँ खतरे में है इसलिए तुम लोग आज ही गांव छोड़ कर निकल जाओ, जिन्दा रहोगे तो और जमीन खरीद लोगे. 

बच्चे बहुत डर गए थे लेकिन उन्होंने बात मानकर वहां से जाने का निश्चय किया.तीनो रात में गांव छोड़कर जंगल की तरफ चल पड़े, उधर बदमाशों को इसकी भनक पड़ गयी वो बच्चो को ढूंढने जंगल की तरफ चल पड़े. उनको पीछा आता देख तीनो बच्चे बिछड़ गए और फिर अलग-2 दिशा में भाग गए तथा अपनी जान बचा पाए. तीनो अब बिछड़ चुके थे और अपने अपने जीवन में मस्त थे. 

इस घटना के 20 वर्ष पश्चात्,बड़ा भाई जो हिमाचल साधना में चला गया था वो गांव में लौट आया.उसे तपस्या से एक सिद्धि प्राप्त हो गयी थी. वो किसी भी इंसान के सामने जाकर उसका हाथ पकड़कर उसकी किस्मत में क्या लिखा है जान सकता था. जब वो गांव पहुंचा और उसे परिवार का कोई भी सदस्य नहीं मिला तो गांव के बुजुर्ग काका के पास जाकर परिवार के बारे में पूछा. काका ने उसको पूरी घटना बता दी. घटना जानकर वो दुखी हुआ और बुजुर्ग से बोला-" काका,आप तीनो बच्चो का पता बता सकते हो?

काका ने कहा-तीनो का तो नहीं लेकिन बड़े वाले रामु का पता याद है वो इसी जंगल के पास वाले पहाड़ पर छोटी सी कुटिया में रहता है. 

बड़ा भाई,अपने बड़े भतीजे को ढूंढते हुए उसके पास पहुंचा, वहां जाकर उसने रामु को अपने बारे में बताया, रामु जानकर खुश हुआ. जब बड़े भाई ने रामु की कुटिया देखि तो उसको बड़ा दुःख हुआ. रामु बहुत ही निर्धनता में जीवन यापन करता था. बड़े भाई ने रामु से पूछा- बेटा तू 28 वर्ष का है, तू काम क्या करता है ?

रामु- ताऊजी, मैं जंगल से 1 गट्ठर लकड़ी काट कर लाता हूँ, और उस गट्ठर को नजदीकी हलवाई को दे देता हूँ वो उस लकड़ी के बदले मुझे 50 रुपये दे देता है. उस 50 रुपये से मेरा काम चल जाता है. 

ताऊजी- तू 1 ही गट्ठर क्यों लाता है, अभी तो हस्त पुष्ट है म्हणत किया कर और ज्यादा लाया कर ताकि तू ज्यादा धन अर्जित कर सके.

रामु- ताऊजी, जब मेरा काम 50  रुपये में चल जाता है तो ज्यादा क्यों लाउ?

बड़ा भाई सोच में पड़ गया और इसी बीच उसने रामु का हाथ पकड़ कर उसका भविष्य देखा. उसने देखा की रामु के जीवन में लकड़ी का रोजाना एक गट्ठर लाना ही लिखा है,उसे रोजाना एक गट्ठर लकड़ी ही मिलेगी न ज्यादा न कम. बड़े भाई अब यह जानकर दुखी हुए लेकिन उन्होंने दूसरे दिन सुबह-सुबह उठते ही रामु को एक लकड़ी का छोटा सा टुकड़ा दिया और कहा की-रामु तू जंगल जाये तो इस लकड़ी का ही गट्ठर लेकर आना, यह लकड़ी नहीं मिले तो कुछ मत लाना. 

रामु ने ताऊजी से कहा- किन्तु ताऊजी नहीं मिली तो?

बड़े भाई ने कहा- तुझे नहीं मिली तो मैं आजीवन तेरे पास रहूँगा और तेरी सेवा करूँगा,किन्तु तू कोई और लकड़ी लेकर मत आना. रामु ताऊजी को वादा करके जंगल में चला गया. उसने पूरा जंगल छान मारा लेकिन उसे वो लकड़ी का पेड़ नहीं मिला वो हताश होकर खाली हाथ घर लौटने लगा. इतने में ब्रम्हा जी का सिहांसन डोलने लगा क्योकि उन्होंने रामु की किस्मत में रोजाना लकड़ी का एक गट्ठर लिखा था और आज रामु खाली हाथ जा रहा था, अथार्थ ब्रह्मवाणी मिथ्या हो रही थी, इस चिंता में ब्रह्मा जी ने आनन-फानन में एक उस लकड़ी का पेड़ रामु के रास्ते में खड़ा कर दिया और जब रामु उस पेड़ के नीचे से जाने लगा तो एक पक्षी का बच्चा उसके ऊपर गिर गया, रामु जैसे ही बच्चे को उठाकर पेड़ पर रखने लगा उसे अहसास हुआ की यह वो ही पेड़ है जिसकी लकड़ी ताऊजी ने लाने का बोला था वो अचरज में पड़ गया की पहले यह पेड़ नहीं था लेकिन अब कहाँ से आ गया.लेकिन उसने ज्यादा नहीं  सोचते हुए एक गट्ठर लकड़ी तोड़ी और अपने घर पर चला गया. घर जाकर ताऊजी को लकड़ी दिखाते हुए कहा-ताऊजी, मैं वो लकड़ी ले आया, अब इसे हलवाई को दे आता हूँ. ताऊजी ने उससे कहा रुक ,तेरे साथ मैं भी चलता हूँ. 

दोनों हलवाई के पास गए, हलवाई ने रामु को देने के लिए 50 रुपये आगे किये तो ताऊजी बीच में बोल पड़े- हलवाई, आज यह वो लकड़ी नहीं जो तुझे रोजाना मिलती है, यह चन्दन की लकड़ी है जिसकी कीमत आज 10 हजार रुपये है, अगर तू दे सके तो ठीक वरना बाजार में जाकर बेच देगा रामु. 

हलवाई ने लकड़ी को सुंघा तो वो वाकई चन्दन की लकड़ी थी. हलवाई को पता था लकड़ी की बाजार कीमत 20 हजार से कम नहीं वो तुरंत अंदर गया और 10 हजार रुपये लेकर रामु को दे दिए. रामु की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. अब वो रोजाना इसी प्रकार लकड़ी लेकर आता. कुछ दिनों में रामु अमीर बन गया. अब रामु के ताऊजी ने उससे जाने की इजाजत मांगी और साथ ही बाकि दोनों बच्चो का पता माँगा तो रामु दुखी हो गया और बोला की छोटा भाई बबलू यहाँ से 50 किलोमीटर दूर एक गांव में रहता है लेकिन मुन्नी का पता नहीं. ताऊजी उससे विदा होते हुए दूसरे भतीजे बबलू के पास जा पहुंचे.....(1)

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