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यूनिफार्म से मजहबी ड्रेस तक...अलग पहचान की ज़िद, फिर अलग हो जाने पर रोना मत.

संयोग नहीं, प्रयोग है यह #हिजाब_विवाद,कट्टरता की नई पौध तैयार हो रही है, फल बहुत ही भयानक होगा.     

कर्नाटक के स्कूल-कॉलेज से उपजा विवाद एक बहुत ही बड़ी साजिश प्रतीत होती है, भारत को बदनाम करने की, भारत को बाँटने की. यह मजहबी लोग नहीं जानते यह किस पौध को तैयार कर रहे है और जब यह पौध तैयार हो जाएगी और फल देने लगेगी तो जाहिर सी बात है फल भी ऐसा ही होगा. कुछ दिनों में आने वाले समय हिंदुस्तान के लिए बहुत ही डरावना होने वाला है,इसका कारण अभी की तैयार होने वाली पौध. जिसको मजहबी तहजीब में सींचा जा रहा है. केंद्र में बीजेपी की सरकार होने से वाम पंथी एवं विपक्षी दल दुखी है और अब वो किसी भी हद तक जाने को तैयार है. 


मुस्कान वही मानी गयी शेरनी है जिसको पांच लाख रुपये का इनाम दिया गया क्योकि उसने जय श्री राम  उद्धघोष के सामने अल्लाह हूँ अकबर क उद्धघोष किया था, ताकि और मुस्लिम लड़किया इससे प्रेरित होकर धर्म के लिए कट्टर हो. लेकिन वाकई क्या यह शेरनी है या सीखी सिखाई कट्टरता की निशानी?यह मुस्कान विद्यार्थी तो रही ही नहीं, अब यह तो ब्रेन वाश की गयी कट्टर मुस्लिम लड़की है. साजिश देखिये, आलिया असादी, मुस्कान और इस समूह की अन्य मुस्लिम छात्राएं अक्तूबर 2021 में एक साथ ट्विटर पर सक्रिय हुईं। उन्होंने एक जैसे समय पर एक जैसे ट्वीट किए हैं। जिन दिनों ये ट्विटर पर सक्रिय हुईं उसी समय कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया ने उडुपी और आसपास के जिले में सदस्यता अभियान चलाया था। इनके ट्विटर देखे जाये तो अब यह विद्यार्थी नहीं बल्कि मुस्लिम धर्म के लड़ने वाली कट्टर महिलाएं बन चुके है. इनका इस कदर ब्रेन वाश किया गया है कि इनको खुद का भविष्य अब देश के लिए नहीं अपितु इस्लाम के लिए तैयार है यह कट्टरता के लिए ही काम कर रही है.और इस तरह से हिजाब विवाद शुरू हुआ जिसने अब धार्मिक रंग लेकर कट्टरता का बीजारोपण कर दिया शिक्षण संस्थान में भी.इसी के साथ इन सबके  ट्विटर अकाउंट पर बायो में लिखा हुआ है "हिजाब_बैन_विक्टिम". इन सबके फॉलोवर तो इतने नहीं लेकिन इनके री-ट्वीट जबरदस्त संख्या में है जो सामान्यतः बिना प्रमोशन के संभव नहीं.

दरअसल कुछ दिनों पहले कर्नाटक के उड्डपी जिले के एक स्कूल में 6-8 मुस्लिम महिला विद्यार्थी अचानक हिजाब में आने लगी , स्कूल प्रशासन ने इसको यूनिफार्म ड्रेस कोड का उलंघन माना और उनको स्कूल परिसर में स्कूल यूनिफार्म में आने को कहा. जब मुस्लिम महिलाओ ने उनकी बात नहीं मानी तो हिजाब को स्कूल यूनिफार्म का हिस्सा न मानते हुए उन्हें स्कूल परिसर में प्रशासन ने प्रवेश देने से मना कर दिया, बस उसी के बाद से यह विवाद उठ गया और मुस्लिम विद्यार्थियों के साथ धर्म के नाम पर भेदभाव का आरोप लगा कर बवाल काटना शुरू कर दिया. कट्टर इस्लामिक संघठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI)का सहयोगी संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया (CFI) के साथ इन विद्यार्थीओ को जोड़ा गया फिर तो गाड़ी पटरी से उतरनी ही थी क्योकि इन दोनों कट्टर संगठन का तो काम ही इस्लाम के नाम पर देश में माहौल बनाना और देश की छवि को धूमिल करना है. इस बार तो हथियार मुस्लिम स्कूल/कॉलेज महिला विद्यार्थी थी तो इनके वार में असर तो आना था. इनका काम ही धार्मिक सौहार्द बिगाड़ना है और मुस्लिम को भारत में बेसहारा, कमजोर, उत्पीड़ित, लाचार दर्शाना है. लेकिन इस लड़ाई का कितना भयंकर परिणाम होने वाला है भविष्य में इसका अंदाजा है और यह लोग उसी की राह पर चल रहे है.

 आपने कभी गौर किया, 2014 से पहले क्या किसी भी स्कूल,कॉलेज,ऑफिस में हमने आस-पास मुस्लिम विद्यार्थियों को हिजाब या टोपी में पाया था? मैं राजस्थान के कोटा जिले से आता हूँ, एवं कम से कम 4 स्कूल, 5 कॉलेज में पढ़ चूका हूँ और 4 शिक्षण संस्थानों में कार्य कर चूका हूँ, तीन में टीचर की तरह और एक प्रशासन विभाग में, लेकिन कही पर भी मेने क्लास के भीतर एक भी विद्यार्थी को यूनिफार्म के अलावा अन्य मजहबी कपडे में नहीं पाया, इनफैक्ट वार्षिक उत्सव हो या रंगारंग प्रोग्राम तक में भी नहीं, जब यूनिफार्म जरुरी नहीं थी.
तब हम वस्त्रो से किसी की पहचान नहीं कर पाते थे सब विद्यार्थी थे, चाहे मुस्लिम हो या हिन्दू. इसके अलावा हमारे साथ जो सहकर्मी थे वो तक कभी हिजाब में या अन्य मजहबी कपड़ो में संस्थान नहीं आये. मुस्लिम महिलाएं भी सह कर्मी थी टीचिंग में भी और नॉन टीचिंग में भी लेकिन कभी उनको हिजाब में नहीं देखा. लेकिन अचानक अब उनकी फेसबुक वॉल पर भी #सपोर्ट_हिजाब पर ट्रेंड करते हुए देखकर स्तबध हूँ. 

2021 के अंत तक भी यह बेवजह का विवाद नहीं उठा था, लेकिन 5 राज्यों में चुनाव को देखते हुए हर बार की तरह इस बार फिर मुस्लिम वोटो का ध्रुवीकरण करने के लिए सोची समझी साजिश की गयी चूँकि कानून व्यवस्था सुदृढ़ होने के कारण दंगे हो पाना अब मुश्किल नजर आ रहा था  इसलिए अब मुस्लिम महिलाओ को आगे कर दिया गया और तमाम विपक्षी पार्टिया बुद्धि को खूंटी पर टांग कर इस हिजाब विवाद में कूद पड़ी और उलूल-जुलूल दलीले दे रही है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी को तो मुद्दे की हकीकत ही नहीं पता और बोल दिया बिकिनी, घूँघट पहन कर हिजाब आदि पहनना महिलाओ का अधिकार है उनको यह अधिकार सविंधान ने दिया है. इसके अलावा ओवैसी साहब ने भी स्कूल में मुस्लिम विद्यार्थियों को हिजाब पहन कर जाने की मांग की है कहा है कि "मुस्लिम बेटियों के ऊपर अत्याचार हो रहा है." कुछ का कहना है यह "महिलाओ कि चॉइस है वो हिजाब पहने या नहीं,उन पर थोंपा नहीं जा सकता."    

कुछ मुस्लिम पढ़े लिखे लोगो से जब मेरी चर्चा हुई तो उनके तर्क भी जबरदस्त थे जैसे- लोगो को क्या जरुरत है मुस्लिम लड़कियों के चेहरे को देखने की ? वो क्यों अपने बाल दिखाएंगी दूसरे मर्दो को ? अगर हिजाब धर्म का हिस्सा है तो क्यों उनको रोका जा रहा है ?धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है क्यों उनसे छीना जा रहा है आदि. लॉ की पढाई (फाइनल सेमेस्टर)करने वाले एक व्यक्ति ने अपने व्हाट्स अप पर एक तरफ नागा साधु और दूसरी तरफ हिजाब वाली मुस्लिम लड़कियों का कोलाज फोटो लगाया, और कैप्शन में लिखा " जब इनको देश में  इनके हिसाब से रहने की आजादी है तो हिजाब पहनने मुस्लिम महिलाओं को क्यों नहीं?" उसके जवाब में उसके तर्क आप खुद देख लीजिये. 

एक भी पढ़े लिखे मुस्लिम ने कभी इस बात का जिक्र नहीं किया कि यह अधिकार कहाँ तक सीमित है ? हिजाब यदि चॉइस है तो सविंधान के तहत बनाये हुए शिक्षण संस्थान में आवश्यक ड्रेस कोड है जो कि सभी के लिए समान है, उसमे चॉइस नहीं चलती,फिर क्यों वहां अचानक चॉइस को अनिवार्य के ऊपर हावी किया जा रहा है ?जिस प्रकार वकील की,पुलिस की,पायलट की, नेवी की, फ़ौज की यूनिफार्म निर्धारित है जो समानता का प्रतीक होती है उसी प्रकार स्कूल, कॉलेज, संस्थान की भी यूनिफार्म होती है जो धर्म के ऊपर सिर्फ यह दर्शाती है की इस ड्रेस को धारण करने वाला सिर्फ एक विद्यार्थी है उसका कर्म शिक्षा है. लेकिन यहाँ पर साजिश वश हिजाब से एक अलग दीवार खींची जा रही है. अब मुस्लिम महिलाएं हिजाब में उस समानता के सिद्धांत को धूमिल करना चाहती है वो चाहती है की उनकी प्राथमिक पहचान एक विद्यार्थी के तोर पर नहीं एक मुस्लिम के तोर पर हो. यदि उनकी यह मांग मान ली जाती है तो इसका परिणाम यह होगा की एक धार्मिक भेदभाव स्कूल लेवल पर उत्पन्न हो जायेगा. विद्यार्थियों के मध्य एक दीवार खड़ी हो जाएगी. हमारे राजस्थान के कई स्कूल में विद्यार्थियों के टिफिन में मांसाहार लाना सख्त मना है क्योकि यहाँ कक्षा में शाकाहारी एवं मांसाहारी विद्यार्थी साथ पढ़ते है और लंच भी करते है,सभी की धार्मिक भावनाओ का सम्मान करते हुए यह निर्णय लिया गया है लेकिन अब यहाँ मांग उठेगी की स्कूल में मांसाहार भी लाने दिया जाये, जिसका परिणाम यह होगा की विद्यालय में मांसाहार खाने वाले विद्यार्थी अलग लंच करेंगे और शाकाहारी अलग. जब विद्यार्थियों में एकता का भाव डाला जाना चाहिए वहीँ से इनमे अलग-अलग रहने का भाव डाला जायेगा. साम्प्रदायिक दीवार को बहुत ही मजबूती से तैयार किया जायेगा जिसको भविष्य में पाटना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा.

जो बीजेपी आरएसएस से नफरत करते है वो इस कधर अंधे हो चुके है की उनको यह नहीं पता भविष्य में हमेशा के लिए बजे सत्ता में नहीं रहेगी लेकिन उनका डाला यह बीज विशाल वृक्ष बन चूका होगा. उन्होंने कभी ईमानदारी से यह नहीं सोचा की उनके हिजाब की आजादी कोई नहीं छीन रहा बल्कि सत्य तो यह है उनको डराया जा रहा है और उनको आगे बढ़ने से रोका जा रहा है.  महिलाओ को परदे के पीछे रखने की साजिश है. 

नाते प्रथा, घूंघट प्रथा, पर्दा प्रथा,सती प्रथा, बालविवाह, मौताणा, दहेज़ प्रथा, कन्यादान आदि को इन्ही वामपंथियों ने तरह-तरह से कठघरे में खड़ा किया है और हिंदुओ ने विकास के लिए इन पर आपत्ति नहीं जताई लेकिन मुस्लिम में अभी भी तीन-तलाक,हलाला,बुरका प्रथा, मस्जिदों में महिलाओ का प्रवेश आदि पर किसी ने बात नहीं की, उनको विकास की जरुरत नहीं ? मुस्लिम महिलाओं को पुरुषो के बराबर क्यों अधिकार नहीं दिए जा रहे है? मुस्लिम पुरुष खुद कभी नहीं चाहते की मुस्लिम महिलाएं उनके बराबर आकर खड़ी हो. आज पुरे विश्व में यदि देखा जाये तोअन्य धर्म की महिलाओं की तुलना में मुस्लिम महिलाएं बहुत ही ज्यादा पीछे है,लेकिन उनको आगे लाने के लिए कोई खड़ा नहीं , वो महिलाएं खुद नहीं. क्या किसी भी संस्थान ने यह कहा है कि हिजाब, बुरका पहनने कि देश में मनाही है? बिलकुल नहीं, यदि ऐसा कहा जाता तो यह मन सकते थे कि अत्याचार हो रहा है. जो नियम दशकों से चले आ रहे है उन्ही को माना जा रहा था लेकिन अचानक यह विवाद जोर पकड़ने लगा, बल्कि होना उल्टा चाहिए था, हिजाब से मुक्ति के लिए मुस्लिम महिलाओं को आगे आना चाहिए था जिस तरह हिन्दू महिलाएं घूँघट और पर्दा प्रथा के विरुद्ध सामने आयी.

कर्नाटक विवाद में एक महिला ने कुछ पुरुषो के सामने जो जय श्री राम का उद्धघोष कर रहे थे के सामने अल्लाह हूँ अकबर का उद्धघोष किया, उसे शेरनी बताया गया और पोस्टर गर्ल बताया गया और 5 लाख रुपये तक इनाम देकर धर्म के प्रति कट्टरता के लिए अन्य को प्रेरित किया गया जबकि फरवरी 2016 में उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली शायरा बानो (38) पहली महिला बनीं, जिन्होंने तीन तलाक, बहुविवाह (polygamy) और निकाह हलाला पर बैन लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। शायरा की शादी 2002 में इलाहाबाद के एक प्रॉपर्टी डीलर से हुई थी। शायरा का आरोप था कि शादी के बाद उन्हें हर दिन पीटा जाता था। पति हर दिन छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करता था। पति ने उन्हें टेलीग्राम के जरिए तलाकनामा भेजा। वे एक मुफ्ती के पास गईं तो उन्होंने कहा कि टेलीग्राम से भेजा गया तलाक जायज है। उस महिला ने सुप्रीम कोर्ट में हिम्मत जुटा कर लम्बी लड़ाई की और इंसाफ पाया. लेकिन दुर्भाय है कि किसी ने उसे शेरनी का दर्जा नहीं दिया, मुस्लिम महिलाएं तक उसके साथ खड़ी नहीं हुई.वाम पंथी अपने अपने बिल में घुस गए. आज भी हलाला,मस्जिद में प्रवेश पर मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर बात नहीं कि जाती है.

खेर बहुत सी बाते है, लेकिन उम्मीद करते है यह विवाद देश में आग कि तरह न फैलते हुए सौहार्द को जलाने कि अपेक्षा जल्द थम जायेगा और शिक्षण संस्थानों में धर्म के ऊपर शिक्षा को महत्व दिया जायेगा, एक समानता रखी जाएगी.यदि आज यह कट्टरता का प्रयोग सफल हुआ तो कल से कुछ नई डिमांड देखने को तैयार रहना...

#जय_हिन्द

#जय_भारत

Comments

  1. बेस्ट पैरा
    जो बीजेपी आरएसएस से नफरत करते है वो इस कधर अंधे हो चुके है की उनको यह नहीं पता भविष्य में हमेशा के लिए बजे सत्ता में नहीं रहेगी लेकिन उनका डाला यह बीज विशाल वृक्ष बन चूका होगा.

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  2. Bahut shandar sujeet ji ।।

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